Fazail e Ramzaan Sharif – फ़ज़ाइले रमजान शरीफ

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प्यारे इस्लामी भाइयों

खुदाए रहमान अज़्ज़वजल का करोड़ करोड़ एहसान के उसने हमें माहे रमजान जैसी अज़ीमुश्शान नेमत से सरफ़राज़ फ़रमाया, “माहे रमजान के फैज़ान का क्या कहना इसकी तो हर घड़ी रहमत भरी है| रमज़ानुल मुबारक में हर नेकी का सवाब 70 गुनाह या इससे भी ज़्यादा है |”

निफ़्ल का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और फ़र्ज़ का सवाब 70 गुनाह कर दिया जाता है| अर्श के उठाने वाले फ़रिश्ते रोज़ादारों की दुआ पर आमीन कहते हैं और फरमाने मुस्तफा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुताबिक़ रमज़ान के रोज़ादार के लिए मछलियां इफ्तार तक दुआ ए मगफिरत करती रहती हैं |

इबादत का दरवाज़ा

अल्लाह तआला के मेहबूब दानाए गूयूब मुनज़्ज़ा अनिल उयूब सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमाने आलीशान है के रोज़ा इबादत का दरवाज़ा है|

नुज़ूले क़ुरआन: इस माहे मुबारक की एक खुसूसियत ये भी है के अल्लाह तआला ने इसी महीने में क़ुरआन शरीफ़ नाज़िल फ़रमाया चुनाचे पारा दो सूरह बक़रह आयत 185 में मुक़द्दस क़ुरआन में खुदाए रहमान का फरमाने आली शान है:

Fazail e Ramzaan – Qur’an

شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِيَ أُنزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِّنَ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ يُرِيدُ اللّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلاَ يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ وَلِتُكْمِلُواْ الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ اللّهَ عَلَى مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ (١٨٥) 

तर्जुमाए कंज़ुल ईमान: रमज़ान का महीना जिस में क़ुरआन उतरा लोगों केलिए हिदायत और रहनुमाई और फैसले की रोशन बातें तो तुममे जो कोई ये महीना पाए ज़रूर इसके रोज़े रखे और जो बीमार या सफर में हो, तो उतने रोज़े और दिनों में अल्ला तआला तुम पर आसानी चाहता है और तुम पर दुशवारी नहीं चाहता और इसलिए के तुम गिनती पूरी करो और अल्लाह तआला की बड़ाई बोलो इस पर के उसने तुम्हें हिदायत की और कहीं तुम हक़ गुज़ार हो |

माईनो के नाम की वजह: “रमज़ान” ये रम्ज़ से बना है जिसके माना है “गर्मी से जलना” क्योंकि जब महीनो के नाम क़दीम अरबों की ज़बान से नक़ल किए गए तो उस वक़्त जिस किस्म का मौसम था उसके मुताबिक़ महीनो के नाम रख दिए गए इत्तिफ़ाक़ से उस वक़्त रमज़ान सख्त गर्मियों में आया था इसीलिए ये नाम रख दिया गया|

हज़रत मुफ़्ती अहमद यार खां रहमतुल्लाह अलैहि: फरमाते हैं बाज़ मुफ़स्सिरीन ने फ़रमाया के जब महीनो के नाम रखे गए तो जिस मौसम में जो महीना था उसी से उसका नाम हुआ | जो महीना गर्मी में था उसे रमज़ान कह दिया गया और जो मौसम बहार में था उसे रबीउल अव्वल और जो सर्दी में था जब पानी जम रहा था उसे जमादिउल ऊला कहा गया| (तफ़्सीर नईमी)

सुर्ख याक़ूत का घर: हज़रत सय्यदना अबू सईद खुदरी रदिअल्लहु अन्हु से रिवायत है के मक्की मदनी सुलतान रहमते आलम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमाने रहमत निशान है: “जब माहे रमज़ान की पहली रात आती है तो आसमानो के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और आखरी रात तक बंद नहीं होते| जो कोई बंदह इस माहे मुबारक की किसी भी रात नमाज़ पढता है तो अल्लाह तआला उसके हर सजदे के एवज़ यानि बदले में उसके लिए पंद्रह सौ नेकियां लिखता है और उसके लिए जन्नत में सुर्ख याक़ूत का घर बनाता है फिर जो कोई माहे रमज़ान का पहला रोज़ा रखता है तो उसके साबिक़ा गुनाह मुआफ कर दिए जाते हैं और उसके केलिए सुबूह से शाम तक 70 हज़ार फरिश्ते दुआए मगफिरत करते रहते हैं| रात और दिन में जब भी वो सजदह करता है उसके हर सजदह के बदले उसे जन्नत में एक एक ऐसा दरख़्त यानि पेड़ अता किया जाता है के उसके साए में घोड़े सवार पांस सौ बरस तक चलता रहे|” (शोअबुल ईमान)

पांच ख़ास इनआम: हज़रत सय्यदना जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हो से रिवायत है के रहमते आलम सुल्ताने दो जहाँ  शहंशाहे कौनो मकां सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमाने ज़ीशान है: “मेरी उम्मत को माहे रमज़ान में पांच चीज़ें ऐसी अता की गईं हैं जो मुझ से पहले किसी नबी को न मिलीं|”

  1. जब रमज़ान मुबारक की पहली रात होती है तो अल्लाह तआला उनकी तरफ रहमत की नज़र फरमाता है और जिसकी तरफ अल्लाह तआला नज़रे रहमत फरमाए उसे कभी भी अज़ाब न देगा|
  2. शाम के वक़्त उनके मुँह की बू जो भूक की वजह से होती है, अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क की खुशबू से भी बेहतर है |
  3. फ़रिश्ते हर रात और दिन उनके लिए मगफिरत की दूवाएं करते रहते है|
  4. अल्लाह तआला जन्नत को हुक्म फरमाता है मेरे नेक बन्दों के लिए मुज़य्यन (आरास्ता हो जा बन सवरजा) अनक़रीब वो दुनिया की मशक्कत (परेशानी) से मेरे घर और करम में राहत पाएंगे|
  5. जब माहे रमज़ान की आखरी रात आती है तो अल्लाह तआला सब की मगफिरत फरमा देता है| क़ौम में से एक शख्स ने खड़े होकर अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम क्या वो लैलतुल क़द्र है? इरशाद फ़रमाया “नहीं, क्या तुम नहीं देखते के मज़दूर जब अपने कामो से फारिग हो जाते है तो उन्हें उजरत दी जाती है|” (शोअबुल ईमान)

सगीरा गुनाहो का कफ़्फ़ारा: हज़रते सय्यदना अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु से मरवी है हुज़ूर पुरनूर शाफ़ए यौमुन नुशूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम का फरमाने सुरूर है पांचो नमाज़े और जुम्मा अगले जुम्मे तक और माहे रमज़ान तक गुनाहो का कफ़्फ़ारा है जब तक के कबीरा गुनाहो से बचा जाए| (मुस्लिम शरीफ)

काश पूरा साल रमज़ान ही हो: प्यारे इस्लामी भाइयो, हमारे प्यारे आक़ा सल्ललाहु अलैहि वसल्लम का फरमाने आलीशान है अगर बन्दों को मालूम होता के रमज़ान क्या चीज़ है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती के काश पूरा साल रमज़ान ही हो|

आक़ा सल्ललाहु अलैहि वसल्लम का बयान जन्नत निशान: हज़रत सय्यदना सलमान फ़ारसी रदियल्लाहो अन्हो फरमाते है के महबूबे रहमान सरवरे ज़ीशान रहमते आलम मक्की मदनी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने माहे शअबान के आखरी दिन बयान फ़रमाया,” ऐ लोगो! तुम्हारे पास अज़मत वाला बरकत वाला महीना आया|”

वो महीना जिसमे एक रात ऐसी भी है जो हज़ार महीनो से बेहतर है| इस माहे मुबारक के रोज़े अल्लाह तआला ने फ़र्ज़ किए और इसकी रात में क़याम यानी सुन्नत है जो इसमें नेकी का काम करे तो ऐसा है जैसे और किसी महीने में फ़र्ज़ अदा किया और इसमें जिसने फ़र्ज़ अदा किया तो ऐसा है जैसे और दिनों में सत्तर फ़र्ज़ अदा किए| ये महीना सब्र का है और सब्र का सवाब जन्नत है और ये महीना मसावात यानी गमख्वारी और भलाई का है और इसमें मोमिन का रिज़्क़ बढ़ाया जाता है| जो इसमें रोज़ा दार को इफ्तार कराए उसके गुनाहो के लिए मगफिरत है और उसकी गर्दन आग से आज़ाद कर दी जायेगी और उसे इफ्तार कराने वाले को वैसा ही सवाब मिलेगा जैसा रोज़ा रखने वाले को मिलेगा बगैर इसके उसके अज्र में कुछ कमी हो|

हमने अर्ज़ की या रसूलल्लाह हम्मे से हर शख्स वो चीज़ नहीं पाता जिससे रोज़ा इफ्त्तार करवाए| आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, “अल्लाह तआला ये सवाब तो उस शख्स को देगा जो एक घूट दूध या एक खजूर या एक घूँट पानी से रोज़ा इफ्तार करवाए और जिसने रोज़ादार को पेट भरकर खिलाया उसको अल्लाह तआला मेरे हौज से पिलायेगा के कभी प्यासा ना होगा यहाँ तक के जन्नत में दाखिल हो जाए|”

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